जब-जब मैंने उसे फ़ोन किया
एक मशीनी आवाज़ ने मुझको
थोड़ी देर इंतज़ार करने को कहा
या फिर थोड़ी देर में डायल करने को
इंतज़ार तो मैंने सदियों किया है...
बाद में फ़ोन करने पर
पता चला
उसकी लाइन कहीं और मिल गई है...
सूचना क्रांति के इस शोरो गुल में
कोई मेरी आवाज़ नहीं सुनेगा
नेटवर्क बिजी रहेगा
आखिर कोई कितने रिचार्ज ऑप्शंस अपनाए
कितने सिम बदले
ज़िन्दगी सम पर नहीं आती
विषम है संवाद
बेहतर है
मैं अपना फ़ोन स्विच ऑफ़ कर दूं ...
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
बुधवार, 24 नवंबर 2010
मंगलवार, 23 नवंबर 2010
हर तरफ भूख का साम्राज्य है
चारों ओर बिखरी है भूख की दुर्गन्ध
लोगों का पेट खराब है
भूख से डरे लोग
खाते ही जा रहे हैं
फिर भी हैं भूखे-के-भूखे
नाकों चने चबा रहे हैं
इंसान की जमात में शामिल होने को
बेक़रार जिस्म
ज़रूरी है
कला - संस्कृति को बचाए रखने के लिए
कुछ लोग भूखे रहें
सुजलाम - सुफलाम इस धरती पर
फुटपाथ पर रहते
भूख और मौत के बीच संघर्ष करते
हार की ज़िल्लत सहते मनुष्यों को
पेट भरने के लिए
चिड़ियों का दाना खाते देखो
भूख को सर नवाते देखो
अन्न उपजाने वाला किसान
आत्महत्या न करे तो क्या करे
भूखे है सब-के-सब
शनिवार, 20 नवंबर 2010
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