गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

क्या हुए वो दिन

क्या हुए वो दिन

जब तुझे

चैन न था देखे बिन

बस मुझे

लम्हे और पल गिन

होता था इंतज़ार

शाम के आने का

सोचा था एक बार

दुनिया अलग बसाने का

 

जो देखती थी सिर्फ़ मुझे और जो बस मेरे लिये थी वह दुनिया

जिसकी आँखों में मेरा होना लाज़िम-ए-नूर की शर्त थी वह दुनिया और

जिसकी बाहों में ख़ुद को समेटे ख़ुद को महसूस करने हुनर से वाबस्ता होना सीखा था

वो दुनिया

अब कहाँ गई है

मेरे अंधेरेपन की गली

रौशनी में नहा गई है

पर इतने जाहो जलाल में भी

तू आता नज़र नहीं क्यों होते हुए भी

ज़िंदगी भर रहेगा क्या मलाल ये भी 


6 फ़रवरी 2025