जीवन में जो कुछ भी है
सब कुछ
सहर्ष तो नहीं स्वीकारा है
पर जो है
सो है ही
और थोड़े-बहुत हेर-फेर के साथ
रहेगा भी
तो जैसे-तैसे कर लेने के बाद स्वीकार
खोजा सुख खीझते-छीजते
ख़ाली गुल्लक को हिला-हिलाकर
और सच मानिए थोड़ा बहुत पा भी गया शायद
ख़ाम-ख़याली में
ख़ाली थी
पर तोड़ नहीं पाया गुल्लक
तोड़ूँगा भी नहीं
आशावादी जो ठहरा
उल्लू का पट्ठा।
इसलिए जो कुछ मिला
उसी में हर्ष ढूँढने की ताल-बेताल कोशिश की
और जो नहीं मिला
उसमें भी।
दुख तो इस बात का है
यह मेरे अकेले की दास्तान नहीं।
21 July 2015
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