शनिवार, 8 जनवरी 2011
शुक्रवार, 7 जनवरी 2011
फैज़ अंकल से हुई बात-चीत
मैं ऊपर गया था.
स्पेसबुक में एक पेज बुक है न सबके वास्ते
बस वहीं तक खुल गए थे मेरे रास्ते
फैज़ू अंकल से पूछा मैंने
मुहब्बत माँगने से क्यों रोका तैने
और क्या-क्या नहीं माँगना है
दिल के कटोरे को क्या अलगनी पे टाँगना है?
मैने कही के
मेरे तो माँगने पे भी कोई इनवीटेशन नहीं आत्ता
याए जीने से अच्छो तू भाड़ में काए नई जात्ता
उन्होंने कहा मुहब्बत माँगने से कहाँ रोका मैंने
यार मेरे गलत सुनली तैने
बस पहली सी मुहब्बत न माँग
दिल को चाहे कहीं भी टाँग
कहा नहीं कुछ उन्होंने राँग
जब कुएँ में ही पड़ गई भाँग
शोर मचाने लग गए साँग
नाक हो गई सबकी लाँग
तो मेरे, इसके, उसके और न जाने किस-किसके
महबूब
भईया पहली सी मुहब्बत न माँग
स्पेसबुक में एक पेज बुक है न सबके वास्ते
बस वहीं तक खुल गए थे मेरे रास्ते
फैज़ू अंकल से पूछा मैंने
मुहब्बत माँगने से क्यों रोका तैने
और क्या-क्या नहीं माँगना है
दिल के कटोरे को क्या अलगनी पे टाँगना है?
मैने कही के
मेरे तो माँगने पे भी कोई इनवीटेशन नहीं आत्ता
याए जीने से अच्छो तू भाड़ में काए नई जात्ता
उन्होंने कहा मुहब्बत माँगने से कहाँ रोका मैंने
यार मेरे गलत सुनली तैने
बस पहली सी मुहब्बत न माँग
दिल को चाहे कहीं भी टाँग
कहा नहीं कुछ उन्होंने राँग
जब कुएँ में ही पड़ गई भाँग
शोर मचाने लग गए साँग
नाक हो गई सबकी लाँग
तो मेरे, इसके, उसके और न जाने किस-किसके
महबूब
भईया पहली सी मुहब्बत न माँग
गुरुवार, 6 जनवरी 2011
दरख्तों ने किया परस्पर
संवाद रात भर
थी फिजा सर्द
और बहस गर्म
मंथन गहन
वाद-प्रतिवाद
रहा गई कसर बस
उगलने को आग
शायद आज बैठी थी
महापंचायत
आरोप - प्रत्यारोप
वायु का प्रकोप
असंख्य आवाजें
पर धुन थी एक
क्या कर रहे थे वे समूह गान
या शायद
विलाप?
अचानक हवा थम गई
मानों बर्फ सी जम गई
शायद निर्णय किया जा चुका था
हवा के जोर से खुद को बचाते
चीखते - चिल्लाते मनुष्य
दैत्य-दानव देवता गंधर्व किन्नर
रूदन करती सर - मुंह ढके महिलाएं
आकृतियाँ
पुनः दरख़्त बन चुके थे
निर्णय हुआ शायद
कि अंत समीप है
सो किया कुछ जा नहीं सकता
अँधा युग के प्रहरी की तरह
बस देखा जा सकता है
जगत तमाशा
सो इसे चलने दो
इस रात को अब ढलने दो
संवाद रात भर
थी फिजा सर्द
और बहस गर्म
मंथन गहन
वाद-प्रतिवाद
रहा गई कसर बस
उगलने को आग
शायद आज बैठी थी
महापंचायत
आरोप - प्रत्यारोप
वायु का प्रकोप
असंख्य आवाजें
पर धुन थी एक
क्या कर रहे थे वे समूह गान
या शायद
विलाप?
अचानक हवा थम गई
मानों बर्फ सी जम गई
शायद निर्णय किया जा चुका था
हवा के जोर से खुद को बचाते
चीखते - चिल्लाते मनुष्य
दैत्य-दानव देवता गंधर्व किन्नर
रूदन करती सर - मुंह ढके महिलाएं
आकृतियाँ
पुनः दरख़्त बन चुके थे
निर्णय हुआ शायद
कि अंत समीप है
सो किया कुछ जा नहीं सकता
अँधा युग के प्रहरी की तरह
बस देखा जा सकता है
जगत तमाशा
सो इसे चलने दो
इस रात को अब ढलने दो
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