दरख्तों ने किया परस्पर
संवाद रात भर
थी फिजा सर्द
और बहस गर्म
मंथन गहन
वाद-प्रतिवाद
रहा गई कसर बस
उगलने को आग
शायद आज बैठी थी
महापंचायत
आरोप - प्रत्यारोप
वायु का प्रकोप
असंख्य आवाजें
पर धुन थी एक
क्या कर रहे थे वे समूह गान
या शायद
विलाप?
अचानक हवा थम गई
मानों बर्फ सी जम गई
शायद निर्णय किया जा चुका था
हवा के जोर से खुद को बचाते
चीखते - चिल्लाते मनुष्य
दैत्य-दानव देवता गंधर्व किन्नर
रूदन करती सर - मुंह ढके महिलाएं
आकृतियाँ
पुनः दरख़्त बन चुके थे
निर्णय हुआ शायद
कि अंत समीप है
सो किया कुछ जा नहीं सकता
अँधा युग के प्रहरी की तरह
बस देखा जा सकता है
जगत तमाशा
सो इसे चलने दो
इस रात को अब ढलने दो
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