फेसबुक पोस्ट पढ़कर पता चला मेरे दोस्त पुंजु का नाटक आगामी भारत रंग महोत्सव के लिए सेलेक्ट न हो पाया।
इस रिजेक्शन का मुझे व्यक्तिगत अफ़सोस है।
पुंज निर्देशित पटकथा देखा है मैंने। मुझे अच्छा लगा था।
पर सेलेक्ट न होने पर हो क्या सकता है?
सेलेक्टर्स से हर वो आदमी नाख़ुश होगा ही जिसका सेलेक्ट नहीं हुआ।
इस बार के ख़ुद सेलेक्टर्स भी अगले वर्ष जब अपने नाटक भरेंगे और रिजेक्ट होंगे तो सल्लनी रिसेंटियाएँगे।
रिजेक्शन का लॉजिक जो सब पर एक सा हो दिया जा सकता है।
पर ऐसा कहाँ होता है?
आपने कहीं देखा है ऐसा?
या फिर जामुन के पेड़ वाला अंडरकरेंट लॉजिक अॉटोमैटिकली एक्सेप्ट काय को नहीं कर लेते जी!
किसी फेस्टिवल इत्यादि में आपका नाटक आना-नाना आपके नाटक की श्रेष्ठता की गारंटी तो नहीं हो सकता।
वैसे भी नाटक की श्रेष्ठता के तय पैमाने नाटक को मार देने के लिए काफ़ी हैं, चाहे वे नाटक वर्ल्ड टुअर ही क्यों न कर मारें।
क्या किसी ऐसी संभावना पर काम किया जा सकता है कि रिजेक्टेड नाटकों का भी एक फेस्टिवल हो?
लेकिन रिजेक्टेड नाटक भी सब-के-सब नहीं लिए जा सकते। उनमें से भी कुछ सेलेक्ट करने पड़ेंगे और उसके लिए फिर एक सेलेक्शन कमेटी बनानी पड़ेगी।
छोड़ो यार!!
9 नवंबर 2019
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