लेट था।
फिर भी सोचा ईएमयू कोई मिल जाए तो अच्छा हो।
अॉटो के पैसे बच जाएंगे।
काफ़ी देर तुग़लकाबाद दिखाकर व्हेयर इज़ माई ट्रेन ऐप ट्रेन को ओखला दिखा रहा था।
यानी ट्रेन निज़ामुद्दीन आने वाली थी।
घर से दो किलोमीटर होगा रेलवे स्टेशन। तेज़-तेज़ पैदल चलकर, रिक्शा के पैसे बचाकर निज़ामुद्दीन पहुँचता हुआ मैं मालगोदाम के शॉर्टकट रास्ते से स्टेशन में दाखिल हो रहा था।
मेरे और प्लैटफॉर्म दो के बीच खड़ी थी मालगाड़ी।
जोखिम लेकर पटड़ी-पटड़ी होता हुआ और न जाने किन-किन वस्तुओं से बचते-बचाते प्लैटफॉर्म 2 पर पहुँचा ही था कि
ऐप ने नया अपडेट दिखाया।
गाड़ी निज़ामुद्दीन पार कर प्रगति मैदान पहुँच चुकी थी।
यानी ऐप में निज़ामुद्दीन का ज़िकर ई कोई नी!! अपडेट करने वाला चला गया होगा चाय पीने। इस बीच रेलगाड़ी छलांग लगाकर ओखला से सीधे प्रगति मैदान पहुँच गई - बोल पवनपुत्र हनुमान की जै!!
उपन्यास राग दरबारी के पात्र रंगनाथ की याद हो आई जिसकी रोज़ 2 घंटा लेट आने वाली पैसेंजर आज मात्र डेढ घंटा लेट होकर ही चल दी थी।
पर मेरे पास तो गाड़ी की स्थिति बताने वाला ऐप था जिसे मैं पल-पल देखता हुआ, आशा भरे क़दमों से स्टेशन की ओर बढ़ रहा था। निज़ामुद्दीन स्टेशन पर मेरे दाखिल होते तक जो ऐप ट्रेन को पिछले स्टेशन यानी ओखला शो कर रहा था, वह अब अचानक से प्रगति मैदान शो करने लगा।
बोले तो गाड़ी ने फोर-जी की स्पीड को भी मात दे दी।
डिजिटल धोखा खाया
मजबूरी में अॉटो ही से दफ्तर आया।
30 November 2018
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