जो मुझ पर ज़ाहिर हुआ है या जिसका मुझसे कुछ भी वास्ता है
शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011
उल्लू से गधे तक
गर विधाता ने हमको उल्लू न गढ़ा होता
तो हमने फेसबुक की जगह फेस पढ़ा होता
इन देट केस हमारा बेस बड़ा होता
टैलंट हमारा बेकार न सड़ा होता
कोई हमारे लिए भी खड़ा होता
हमसे तो अच्छा है रट्टू तोता
ओ जी रह ग्या मैं खोते का खोता
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