जहाँ तक मुझे मालूम है हम सांस लेते हैं तो ऑक्सीजन लेते हैं, और छोड़ते हैं तो कार्बन डाइऑक्साइड। फिर यह 'साँसों की ख़ुश्बू' भला क्या बला है? मुझे लगता है यह कोई फ्रॉड है जो हमारे गीतकारों, रोमांटिक कवियों और गायकों ने हमारे साथ किया है।
क्या आपकी कार्बन डाइऑक्साइड में ख़ुश्बू है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें