गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

क्या हुए वो दिन

क्या हुए वो दिन

जब तुझे

चैन न था देखे बिन

बस मुझे

लम्हे और पल गिन

होता था इंतज़ार

शाम के आने का

सोचा था एक बार

दुनिया अलग बसाने का

 

जो देखती थी सिर्फ़ मुझे और जो बस मेरे लिये थी वह दुनिया

जिसकी आँखों में मेरा होना लाज़िम-ए-नूर की शर्त थी वह दुनिया और

जिसकी बाहों में ख़ुद को समेटे ख़ुद को महसूस करने हुनर से वाबस्ता होना सीखा था

वो दुनिया

अब कहाँ गई है

मेरे अंधेरेपन की गली

रौशनी में नहा गई है

पर इतने जाहो जलाल में भी

तू आता नज़र नहीं क्यों होते हुए भी

ज़िंदगी भर रहेगा क्या मलाल ये भी 


6 फ़रवरी 2025

शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

लड़का

1995 के आसपास लिखी गई पंक्तियाँ

लड़का

भाग रहा है

सड़क पर

नंगे पाँव

पहिया दौडाते हुए

मैं

देख रहा हूँ उसे

पहिया बनते हुए...

 

 

विजय सिंह 

किरण मैम के लिये (उनकी रिटायरमेंट के कुछ दिन बाद लिखी पंक्तियाँ)

 2 मई 2011


किरण मैम के लिये 

(उनकी रिटायरमेंट के कुछ दिन बाद लिखी पंक्तियाँ)


एक न एक दिन तो जाना ही था तुम्हें


तुम

जो अनंतकाल से बाट जोह रही थी कि न आओ

तो आ गया वो दिन कि जब तुम नहीं हो


क्या इसी दिन के लिए ही तो नहीं की थी वापसी मैंने

कि देखने को फिर से खाली नए शीशे से चमचमाता टेबल

कि खाली-खाली-सा मैं और चुप दराजें, और फ़ाईले


क्या फिर उन क्षणों को खींच लाने या उनमें जीने की चाह करूँ

असफल

अंतिम विदा बाक़ी है अभी

जिसे लेने कि तुम्हारी बेचैनी को समझ सकते हुए भी नहीं चाहता मैं समझना


मैं रुक कर तुम्हारी अनुपस्थिति से सिक्त होना चाहता हूँ

भीगता था जो तुम्हारी मौजूदगी में भी...