रविवार, 24 अप्रैल 2011

जाहिरा तौर पर कुछ नहीं है 
पर ऐसा लगता है 
मैं हूँ.  

बेशक बहुत कुछ ज़ाहिर जो हुआ या होता रहा 
वो मेरे अंतर्मन में खोता रहा 

देखें कब और कैसे बाहर आता है...