मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

एक्सीडेंटल या प्लान्ड उर्फ़ प्लांटेड

 एक्सीडेंटल था

उस पर किसी और का कंटरोल था


जे बातें ऐसे बता रए जैसे 

आम लोगन कू पैले से पतो ई न था। 


एक्सीडेंटल न होकर सुनियोजित होता तो उस पर किसी और का कंट्रोल

नहीं होता क्या? 


जे वाला बेलगाम हैगा क्या? 


बेलगाम कोई न होत्ता, 

बस यू देखना पड़े के यो लगाम ससुरी है किसके हाथ मै। 

आम जन के हाथ में लगाम न होती कभी। उनके हाथ में तो केवल लगान होता है 


ये बात आम जन और मैंगो पीपुल सब कू मालूम है 

कोई सिकायत भी न करता इस बात की । 

इसी को शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व कहवें (जादा एक्सप्लेन 'उखाड़ लेंगे' वाली पंक्ति के बाद किया गया हैगा)। 


तो, जे जो नियोजित किया गया है न, 

जे जो एक्सीडेंटल नाय हैगो, 

इसके बी सब सीक्रेट सब कू मालूम ऐ। 

इसके भक्तों को बी मालूम हैंगे (जैसे उसके भक्तों को मालूम थे)। 


कई तो इसके भक्त हैं ही इसीलिए के उन्हें वो सब मालूम है।  

उन भक्तों को चईए ई ऊ।

विकास लेके ऊ के करेंगे?

स्वच्छता अभियान के उनके अपने मतलब हैंगे। 


सब कौ पतौ जे नियोजित है और आन वारा बी नियोजित ई होएगो।

एक्सीडेंटल बी होयगो तौ हम्म के उखाड़ लेंगे। 


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शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ है आप इन्सेक्योर रहें और वो सेक्योर।

आप सिर्फ इसी बात से सुरक्षित महसूस करें के उसकी निगाह आप पर न पड़ी। 

वरना वो जब चाहे आपको मार दें और आप चूँ न करें और कातिलों को थैंक यू कहें कि वो और बुरी तरह से आपको मार सकते थे लेकिन उन्होंने बख्श दिया। 


आपमें ऐसी दिव्य भावना की मौजूदगी को वो समय-समय पर दंगों, इंकुइरी (inquiry) इत्यादि से टेस्ट करता रहता है और शासित होने का शार्ट टर्म कोर्स आपको करवाता रहता है। 

आप डर-कर-मर-कर टाइम पास करते हैं। सामने से आता कोई आपका कुशल मंगल पूछता है तो आप कह देते हो - ठीक ही चल रहा है सब।


29 December 2018

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

नागरिकता संशोधन क़ानून

 मैं बेहद ईमानदारी से यह यकीन करना चाहता हूँ कि 

जो लोग सिटीज़नशिप अमेंडमेंट क़ानून का विरोध कर रहे हैं 


18 December 2020


वे ऐसा इसे बिना पढ़े कर रहे हैं 


और यह भी कि वे लोग 

विरोध करने के आदी हैं 

और देश के विकास के विरोधी हैं 

और कभी उनकी अपने धर्म के तो क्या 

सगे भाईयों तक से नहीं बनी। 


तभी तो यह विरोधी ग़ैरमुल्की हमधर्म को आने नहीं देना चाहते


इस ब्यूटीफुल ऐक्ट का विरोध करने वाले लोग ग़ैर ज़िम्मेदार हैं और ऊलजुलूल बातें करने के शौकीन हैं। 


उनके पास बहुत पैसा और संसाधन हैं और उन्होंने सोचा कि 

बैठे-ठाले क्या करें, रुपया तो आप-से-आप पैदा हो रहा है। 

तो चलो विरोध करते हैं। और वे बग़ैर कुछ सोचे समझे 

सीएए (नागरिकता संशोधन क़ानून) का विरोध करने लगे। 


इन विरोधकों में से कइयों को तो इस सर्दी में पुलिस की लाठियाँ खाने से विशेष प्रेम है।


और जो लोग इस क़ानून (नाम एक बार फिर बता दूँ, सिटीज़नशिप अमेंडमेंट ऐक्ट) के समर्थन में हैं

वे इसे मात्र पढ़कर ही नहीं,

अपितु इसका आमूलचूल अध्ययन करके आए हैं। 


उन्हें अपने सभी हमरिलीजनों से बहुतै जादा मुहब्बत है 


कि वे सगे भाईयों से कभी नहीं लड़े और अपने धर्मिंदा लोगों को अपनी ओर से जो हक़ उन्हें अपने तौर पर देना चाहिए 

उन्होंने दिये हैं।


दिल्ली, गुजरात और मुंबई में (अमंग्स्ट अदर्स) बिहार के लोगों को जो इज़्ज़त हासिल है 


उससे कहीं अधिक ज़्यादा पुरख़ुलूस मुहब्बतो-अक़ीदत से,

बाहर से आने वाले लोगों का वेलकम 


देश के यह सच्चे समर्थक करेंगे जो मेजॉरिटेरियनिज़्म और माइनॉरटी-इज़्म से कोसों दूर हैं।


सताए हुए लोगों का बाहें खोलकर स्वागत करेंगे इस क़ानून के समर्थक क्योंकि वसुधैव कुटुंब come नामक हाई-डेफिनेशन और हाई-रिज़ॉल्यूशन के ओजस्वी विराट थॉट से सम्पृक्त हैं दीज़ लरनेड पीपल।


तो दिलाइए मुझे यक़ीन।

शनिवार, 12 दिसंबर 2020

 नॉरमली अपनी फोटो लगाता नहीं मैं फेसबुक पर अपनी पोस्टों के साथ। पर आज दो-दो लगा रखी हैं। थोड़े-बहुत अंतर के साथ दोनों लगभग एक जैसी हैं। चाहता तो था मैं सिर्फ़ हिमाचली टोपी की फोटो लगाना, पर बिना सिर के कैसे दिखाऊँ इस कोशिश में दो-तीन फोटो खींची भी पर मज़ा न आया। सोचा जब पहनकर ही दिखानी है तो सिर के साथ थोबड़ा भी आ ही जाए तो कोई हर्ज़ नहीं होना चाहिए।

तो मेरी इस पोस्ट की वजह यह हिमाचली टोपी है जिसे मैंने कुछ और टोपियों के साथ नवंबर 2018 में शिमला से ख़रीदा था। आज इस ऋतु में पहली बार पहनकर जब मैं लुटियंस की दिल्ली में अशोक रोड पर टहलते और तमाशा-ए-अहले करम देखने की नाकाम कोशिश में चलता हुआ मंडी हाउस की जानिब आते हुए जनपथ के गोलचक्कर से ज़रा पहले पहुँचा ही था कि मेरे पीछे से आते एक ऑटो वाले ने बेसाख़्ता मेरे पास पहुँचकर कुछ कहा।
मुझे लगा कि या तो वह मुझे कोई संभावनाओं से लबरेज़ कोई सवारी समझ रहा है या दिल्ली के इस हिस्से में अक्सर न चलने के कारण कोई रास्ता, या कोठी नंबर, इत्यादि पूछ रहा है।
अपने कानों में 70 रुपये वाला (माफ करना) चाइनीज़ हेडफोन ठूँसे हुए मैं आकाशवाणी की ख़बरें सुनता हुआ जो दिख जाए उसे देख लेने की हसरत लिये बिना कहीं पहुँचने की जल्दबाज़ी के मंथर गति से कदमताल कर रहा था।
चूंकि मैंने उसे देख लिया था और नोटिस कर लिया था कि वह कुछ कह रहा है, अतः लाज़मी था कि मैं रुकता, अपनी दुनिया से बाहर आता और उस ऑटो वाले की दुनिया और अपनी दुनिया के बीच की द्विपक्षीय किंतु सार्वजनिक दुनिया में उससे संवाद करता और पूछता - हाँ भाई क्या है।
मैंने अपने मोबाइल को ऑन किया। उसका लॉक खोला। आकाशवाणी के डाउनलोडेड ऐप में पहुँचकर उसमें चल रहे समाचार बुलेटिन को रोकने के लिये पॉज़ का बटन दबाया और फिर कानों में पैबस्त किसी चाइनीज़ कंपनी के 70 रुपये वाले ईयरफोन, जिसके माध्यम से मैं सुन रहा था कि पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सरहदी इलाक़े में बने तनाव और वर्तमान स्थिति पर हमारे विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने क्या कहा है, को अपने कानों के कुछ देर के लिये जुदा करने के बाद मैंने उस ऑटो वाले से प्रश्नवाचक स्वर में कहा - जी कहिए क्या बात है?
उसने हिमाचली में कहा (जो मुझे समझ आती है पर बोलने का अभ्यास नहीं है हालाँकि प्रोमिला जब अच्छे मूड में होती है तो मुझसे हिमाचली में ही बात करती है) कि आप कहीं जा रहे हैं तो छोड़ दूँ।
अजनबियों को अपना से लगने वाले और अपनों को अजनबी से लगने वाले इस शहर-ए-दिल्ली में अचानक आपके पास आकर कोई अनजान आदमी जब इस तरह का प्रपोज़ल दे तो उसे अक्सर इन-डीसेंट माना जाता है।
लेकिन मेरे अंदर जो देहाती आदमी है (हालांकि मैं पैदा हुआ और पला बढ़ा दिल्ली में ही पर न जाने क्यों मुझे लगता है कि मैं कोई गँवई थाट का राग हूँ, जिसे अभी तक गाया नहीं गया) उसने बात को एकदम समझ लिया। मैंने हँसते हुए कहा - इरादा तो मेरा पैदल जाने का था, किंतु अब आप आकर रुके हैं तो चलिए मंडी हाउस के गोलचक्कर तक छोड़ दीजिए। इस पर भी ऑटो वाले ने पूछा कि क्या मुझे हिमाचल भवन जाना है।
मैंने अपनी आदत के मुताबिक उससे पूछा तो उसने बताया कि वह हमीरपुर का है। उसने कहा आप देखने में हिमाचली लगते हो और आपकी टोपी देखकर मैंने ऑटो रोक लिया सोचा आप मेरे पहाड़ी भाई हो तो चलो आपको कहीं छोड़ देता हूँ। उसने काम्प्लीमेंट दिया - सर जी मैं हिमाचली हूँ पर आप तो मुझसे भी ज़्यादा हिमाचली लग रहे हो। मैंने इस तारीफ़ को मन-ही-मन स्वीकारते हुए अपने आपसे कहा आजकल होने का नहीं, लगने का ही ज़माना है।
मुझे मंडी हाउस पर उतारकर सकुचाते हुए वाजिब राशि बोहनी के नाम पर स्वीकार कर वह ऑटोवाला वापिस चला गया।
मगर उस ऑटो वाले से मुलाक़ात से कुछ पहले एक और घटना हुई थी।
पटेल चौक पर गोल डाकख़ाने के सामनेवाले चौड़े और लुटियाना-भव्य खुलेपन से सुसज्जित फुटपाथ पर चलते हुए मुझ को सामने से एक व्यक्ति आता दिखा। वह कोई पच्चीस से तीस बरस के बीच का कोई नौजवान था मगर लुटा-पिटा। इस कोहरेदार सुबह और धीरे-धीरे बढ़ती सर्दी में वह शख्स फटेहाल तो नहीं पर अपने अल्प वस्त्रों में थोड़ा-बहुत कांपता चलता हुआ, शायद अपने भीतर जलता हुआ फिर भी बेखबर और चिंताओं से भरी किसी अन्य दुनिया में दाखिल चल रहा था। उसने मेरी ओर देखकर भी नहीं देखा, जैसे आमतौर पर सड़क पर चलते हुए हम करते हैं। किंतु मैं उसकी ओर देखकर उसे अनदेखा न कर पाया। मन में ख़याल आया क्या मैं उसके लिये कुछ कर सकता हूँ? शायद आपने भी महसूस किया होगा कि आजकल ऐसे दिखने वाले लोगों की संख्या अचानक से बहुत बढ़ गई है।
तो मुझे लगा कि शायद भूख लगी हो उसे तो चाय और एक ब्रेड पकौड़ा उसे ऑफ़र करूँ। पर यह हो कैसे? उससे सीधे-सीधे तो पूछा नहीं जा सकता था। हारा हुआ-सा वह नौजवान अपनी नियति से जूझ रहा था। पर ऐसा भी नहीं था कि उसने मेरी ओर सहायता की याचना-भरी दृष्टि से एक बार भी देखा हो।
तो पहल मुझे ही करनी थी। मैं उसके रास्ते में आया और मुझे अपनी ओर आता देखकर उस व्यक्ति में एक असहजता और अपनी ख़याली दुनिया से बाहर आने की जद्दोजहद नज़र आई। वह व्यक्ति मेरे स्वागत को तैयार न था कि मुझसे पूछे जी बताएँ मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ। पर यकायक मेरे सामने पड़ जाने पर उसका मुझसे कोई छुटकारा भी न था।
उसने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। मैंने कहा - यहाँ आसपास कहीं ब्रेडपकौड़ा बनता है क्या?
उसने असंपृक्त लापरवाही और मेरे प्रश्न की व्यर्थता पर मानों हल्की-सी चिढ़ के साथ बड़े ही बेमन से फिर भी बिना असभ्य हुए जवाव दिया - बनता होगा। और मुझे वहीं खड़ा छोड़ वह अपने रास्ते चलता गया। उसने जो एक पुरानी सी और घिसी हुई ट्रैक पैंट जैसा जेबों वाला कई दिनों से पहना हुआ पायजामा पहन रखा था, उसकी जेब में से बीड़ी का बंडल और माचिस झाँक रहे थे।
मैं कुछ देर के लिये वहीं खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा। अपनी असमर्थता से टक्कर हो जाने पर लाचार-सा मैं पुनः चलने लगा।


बुधवार, 9 दिसंबर 2020

 जब भी कोई नाट्य प्रस्तुति देखता हूँ, अभिनेताओं और निर्देशक के प्रति कृतज्ञता से भर जाता हूँ। 


कई प्रस्तुतियाँ बेहद अच्छी होती हैं, कई कम अच्छी और कुछ-कुछ ऐसी भी कही जा सकती हैं जो प्रभावित न करती हों या एकदम यूँ कहें कि बेकार हों।


लेकिन एक घटिया-सी प्रस्तुति में भी काफ़ी मेहनत तो लगी ही होती है। साथ ही, उसे दर्शकों के सम्मुख लेकर आने में ग़ज़ब की हिम्मत और एक अजब-सा आत्मविश्वास चाहिए होता है। 


मेरा मन उस हिम्मत और आत्मविश्वास को सलाम करने का होता है। क्योंकि यह दोनों ही मुझमें नहीं हैं।


बतौर एक रंगकर्मी मैं जब निर्देशक होने के बारे में सोचते हुए किसी कमतर-से लगने वाले नाटक को देखता हूँ, तो पाता हूँ कि इससे अच्छा तो क्या मैं कभी ऐसा नाटक भी निर्देशित नहीं कर पाऊँगा जैसा मैं देख रहा हूँ।

9 December 2020

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

 मैं तुम्हारी बात मानूँगा

तुम मेरी बात मानोगी


इसका मतलब 

हम दोनों एक-दूसरे की बात

नहीं मानेंगे।


8 December 2018

सोमवार, 7 दिसंबर 2020

दावा और हक़ीक़त

मैंने उससे कहा कि मैं तुम्हारे लिए चाँद तारे तोड़ लाऊँगा। वो बोली तोड़ लाओ। अब मुसीबत मेरी शुरू हो गई। इत्ती दूर जाएँ कैसे? इसरो से सेटिंग की। उनका वाला एक हवाई जहाज़ किराए पर लिया। फुल स्पीड पे उड़ाया। लेकिन जब तारों के पास पहुँचा तो पृथ्वी वहाँ से ओझल हो चुकी थी। और जो तारे पृथ्वी से मोतियों जैसे लग रहे थे, अब नज़दीक जाकर पता चला कि एक-एक तारा पृथ्वी से लाखों गुना बड़ा है। तारे भरने के लिए जो झोला ले गया था उसे ख़ाली ही लेकर वापिस आ रहा हूँ लेकिन समझ नहीं आ रहा कि ये पृथ्वी कौन से रूट पर है।


6 December 2020

Ajay Rohilla, Arun Kumar Kalra and 43 others
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गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

मैं शक्ति की ओर नहीं


3 दिसंबर 2017


 शक्ति मेरी ओर नहीं है


आराधन में रह गया अभाव

न हो पाई मौलिक कल्पना


दरअसल युद्ध जैसा कुछ मैंने माना ही नहीं

जो भी था संघर्ष

थोपा गया था मुझपर 


राम नहीं था मैं

और मेरी सीता मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रही जीवन समर है


फिर क्योंकर करता मैं शक्ति की आराधना


वह शक्ति जो रावण के पास है

रहे

करे वह राज

काज मेरा केवल छोटा सा

जीवन सार्थक जीना


शक्ति आप केवल आराधन से होतीं प्रसन्न। चाहे रावण ही क्यों न हो आपका आराधक

तो क्षमा करें

आप चाहे किसी की भी ओर रहें


मैं आपकी ओर नहीं हूँ।


(राम की शक्ति पूजा पढ़ते हुए)

बुधवार, 2 दिसंबर 2020

 धीरे-धीरे दुख

मुझमें पैठता जाता है


अकेले ही

पीने में ज़हर का प्याला

मज़ा आता है।

2 December 2017