गुरुवार, 21 मार्च 2013

सोमवार, 4 मार्च 2013

शनिवार, 2 मार्च 2013

डरे हुए लोगों की रेप्रेज़ेन्टेशन


लोग - इन्क्लूडिंग मी
धड़ल्ले से
पूरे जोर-शोर से
दसों दिशाओं चहुँ ओर से
पूरे गर्व के साथ
डरे हुए हैं
किसी-न-किसी विपत्ति से

कहना मुश्किल है
विपत्ति डर से पैदा हुई
या विपत्ति से डर

अभी तक नहीं हो सके एक शोध के
न आ सकने वाले नतीजे बताते हैं
कि दोनों साथ-साथ पैदा हुए थे
फिर भी
आने वाली विपत्ति का डर
बड़ा साबित होता रहा
शायद इसीलिए मनुष्य ने डर को ढाल बना लिया
जो हमेशा टूटती रही

डरना मात्र फैशन नहीं है
बल्कि इससे आप सेफ भी हो जाते हैं
क्योंकि आप पूर्ण बहुमत में आ जाते हैं

बाक़ी दो तरह के लोग अल्पमत में हैं
एक - डराने वाले यानि पावरफुल
दो- निडर होकर अपना काम करने वाले

अफ़सोस ! पहले वाली क्लास में हम हो नहीं सकते
थैंक गॉड हम निडर नहीं हैं

बीकॉज़ देयर इज नो हार्म डर कर जीने में
क्यों लिए-लिए फिरें व्यर्थ की आग सीने में

डर कर खुले आम घूमना जेब के लिए फायदेमंद है
वर्ना तो आपके लिए सभी रास्ते बंद हैं
निडर होकर युद्ध लड़ना बेमतलब की सजा है
डर कर उह-आह-आउच कहने का अपना मज़ा है
बस इतना ही तो कहना है सर फ़रमाया आपने बजा है
बाक़ी सब कुछ बेजा है
बस आपही के पास भेजा है
और हमारे पास जो दिल है
मात्र चूहे का बिल है

कुछ लोग जाने क्यों चिल्लाते हैं
हमें जो नज़र नहीं आतीं
सिस्टम की उन्हीं खामियों पर आवाज़ उठाते हैं
न जाने बदले में क्या पाते हैं
ज़रूर कुछ उन्हीं का अपना मन्तव्य होगा
या फिर महान कहलाना उनका गंतव्य होगा

वरना क्यों उन्होंने मशाल उठाई हाथ में
क्या जानते न थे
हम लोग न आएँगे साथ में
और जो जितने आएँगे
अल्पसंख्यक कहलाएंगे
अजी हमारा क्या है
अपना ही सीस गंवाएंगे

भले ही उनकी जद्दोजहद से
हमारा भी कुछ फायदा हो जाए
पर इसी बात पर हम क्यों उनसे हाथ मिलाएं?
जब आलरेडी हुए हैं हमने हाथ फैलाए

बेहतर दुनिया के बंद दरवाज़े खटखटाने वालो
बेशक खटखटाते रहो
खुल जाएं तो हमें बुला लेना
हम तुम्हारी बस में सवार हो जाएंगे
पार हो जाएंगे

अरे ओ निडर लोगो
डर के जियो
और डर के जीने दो
डरने के अपने जन्मसिद्ध अधिकार का उपयोग करो
अच्छा है हम थोडा-सा अपमान सह लें
जिस तरफ की हवा हो उसी ओर बह लें
डरे हुए लोगों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में रह लें

न जाने क्यों
बहुसंख्यक होने के बावजूद
यह शंकालु मन डंकालु होकर गर्व से कहने की हिम्मत नहीं दिखाता
कि हम डरालु हैं
कोई हमें आरसी दिखाए तो हम डरते हुए इधर-उधर देखकर नापतौल कर निडर होकर
कह देते हैं
हम किसी से डरते नहीं

न जाने क्यों
सेफ रहने के बावजूद
कुछ है जो
कहता है - ग़लत कर रीए ओ मियाँ

कुछ-न-कुछ है ज़रूर
जो अन्दर से कचोटता है

क्या आप पास आएँगे
मेरी हरदम गुम सिट्टी-पिट्टी का खयाल करते हुए
मेरे कान में चुपके से
बतलाएँगे
कि ऐसा क्यों है ?
मिस्टर निडर जी
प्लीज़...