बुधवार, 20 मई 2015

मैं दर्ज कराना चाहता हूँ कि बतौर एक भारतीय मैंने खुद को कभी शर्मसार महसूस नहीं किया। अपनी तमाम विडंबनाओं और विशेषताओं के साथ जैसा भी है और था यह मेरा देश है। मेरी मिट्टी मेरा वतन। मेरी माँ। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

रही बात कुछ कमियों की, कुछ घटनाओं की,
तो उन पर मैं शर्मिंदा हूँ कि मैं उन्हें देखकर झेलकर चुपचाप इग्नोर करने का ढोंग रचते हुए टल जाता हूँ।

जब मैं सड़क पर बच्चो को भीख मांगते देखता हूँ मैं शर्मिंदा होता हूँ।

जब अपराधियों को पैसे के ज़ोर पर और ऊपर के लोगों तक पहुँच के ज़ोर पर खुलेआम घूमते देखता हूँ शर्मिंदा होता हूँ।

दंगों में लोगों को मरते देखता हूँ शर्मिंदा होता हूँ।

जब चपरासी-क्लर्क-बाबू के नेक्सस को लोगों की बेइज्जती करते देखता हूँ शर्मिंदा होता हूँ।

बीमार अस्पतालों
और बुनियादी सहूलतों से छूआछूत निभाते लापरवाह स्कूलों को देखता हूँ तो शर्मिंदा होता हूँ।

अल्पसंख्यकों को डरते देखता हूँ शर्मिंदा होता हूँ और जब उन्हें अल्पसंख्यक राजनीति का शिकार हँसते-खेलते होते देखता हूँ शर्मिंदा होता हूँ।

मुझे लगता है कहीं न कहीं मैं दोषी हूँ। शर्मिंदा होता हूँ कि मैं कुछ कर नहीं पाता।
मैं अगले चुनावों का इंतज़ार करता हूँ। वोट की ताकत का इस्तेमाल कर निज़ाम को बदल डालने के शेखचिल्लीपन में हल्का महसूस करता हूँ। मगर सच की ज़मीन पर आकर पता चलता है कि वही निज़ाम रूप बदलकर फिर कुर्सी पर बैठ गया है।

शर्मिंदा होता हूँ। बड़ा ही बेशर्म हूँ। सिवाय शर्मिंदा होने के मुझे कोई और काम ही नही। कितने कारण गिनाऊँ शर्मिंदा होने के। क्योंकि मैं स्वयं को सबका हिस्सा पाता हूँ इसलिए शर्मिंदा होने से बच नहीं पाता।

काश!! मैं शर्मिंदा होने या न होने
निज़ाम को कोसने
अपनी किस्मत पर रोने
और किसी हीरो को हमारे लिए जन्म लेने का इंतज़ार करने की बजाए
खुद खड़ा हो जाता
अपना योगदान कर पाता
फेसबुक पर अपनी शर्मिंदगी का ढ़ोल पीटकर लाइक जमा करने की चाहत रखने की बजाए
जहां कुछ ग़लत देखता वहाँ अड़ जाता
अपने साथ अपने जैसे दूसरों को भी पाता
काश मैं अपना इस्तेमाल न होने देता
काश मैं अपने अधिकार जानता और कर्तव्यों के बारे में जानकर उनका सही मायने में निर्वाह करता
मगर अपनी भावुकता को कुछ शब्दों में समेटकर पैकेजिंग कर देने के सिवाय शायद कुछ और आता नहीं
शर्मिंदा हूँ
लेकिन अपनी जननी जन्मभूमि पर नहीं
सच्ची संतान साबित नहीं कर पाने पर शर्मिंदा हूँ

मैं उन हमवतनों से क्षमा चाहता हूँ जो शर्मिंदा होने की बजाए चुपचाप अपना काम कर रहे हैं। उन सचेतकों से क्षमा चाहता हूँ जो जान की परवाह किए बगैर दूसरों के उन गुनाहों को सामने ला रहे हैं जिनकी वजह से देश को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है परंतु उन गुनहगारों की रक्षा में कई बार पूरा सिस्टम खड़ा मिलता है और सचेतक निहत्था महसूस करता है।

लेकिन एक भारतीय होने पर मुझे गर्व है और मैं हर बार इसी धरती पर जन्म लेना चाहता हूँ.