मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

मर गए तो 
मर जाएँगे 
हम तो अपने 
घर जाएंगे। 
सोचा था
दूर चला जाऊंगा
जाने कहाँ तक चला आया हूँ दूर
अभी तक नहीं जा पाया....
कितना कुछ सोच डाला
तुम्हारे बारे में
बिना तुमसे मिले...
तुझे पाने की चाहत समझा 
खुद को खोकर 

शनिवार, 11 अगस्त 2012

सोमवार, 30 जुलाई 2012

जिन्हें रेस्तरां में खाने का शौक बेहद है - उनके लिए


खा खा खा
खामखा खा
खाने के लिए आ
जा खाके जा
खोल बैंक में खाता
खुलके खा
खाता जा
आता-जाता खा
कमा
बिल चुका
आ कल फिर आ
घर पर कुछ मत बना
कायम रहने के लिए चूरन खा
जा पेट खाली करके आ
और फिर खा
जब भी वो मिला
पिला
था खाने पे पड़ा पिला
जो भी मिला गया खा
खिलखिला
खिला
खा खा खा
खाक में मिलने से पहले खा


सोमवार, 18 जून 2012

ਜਾਣ  ਤੋਂ  ਪਹਿਲਾਂ
ਉਸ  ਮੁੜ  ਮੈਨੂੰ  ਤੱਕਿਆ
ਅਤੇ  ਇਸ  ਤਰਾਂ  'ਥੈੰਕ  ਯੂ'  ਕਿਹਾ  ਜਿਵੇਂ 
ਇਹ ਆਖਿਰੀ ਵਿਦਾਈ ਹੋਵੇ
ਜਿਵੇਂ ਉਹ ਕਹਿਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੋਏ 
ਥੈੰਕ ਯੂ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਰਹਿਣ ਲਈ
ਜਾਂ ਨਾ ਰਹਿਣ ਲਈ
ਥੈੰਕ ਯੂ ਮੈਨੂੰ ਚਿਰਾਂ ਦੀ ਤਾਂਘ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਦੁਆਉਣ ਲਈ
ਥੈੰਕ ਯੂ ਇੱਕ ਹੋਰ ਦੁਖ ਨੂੰ ਮੇਰਾ ਸਹਾਰਾ ਬਣਾਉਣ ਲਈ

ਉਸਦੇ ਸੂਟ ਦਾ ਲਾਲ ਰੰਗ  ਜਿਵੇਂ 
ਚਿੱਟਾ ਦੁਧ ਵਰਗਾ ਬਣ ਗਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਲਾਲੀ
ਉਸਦੇ ਸਦੀਆਂ ਦੇ ਨਿਸ਼ਾਨ ਝਲਦੇ ਚਿਹਰੇ ਨੂੰ
ਰੌਸ਼ਨ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਈ ਸੀ

ਉਸਦੇ ਮਾਨੀਖੇਜ਼ ਹੱਸਦੇ ਬੁੱਲਾਂ ਤੋਂ ਥੈੰਕ ਯੂ 
ਇੱਕ ਮਿੱਠੇ ਤੀਰ ਵਾਂਗ ਨਿਕਲ ਕੇ ਮੇਰੇ ਆਰ-ਪਾਰ ਲੰਘ ਗਿਆ
ਜਾਣ ਲੱਗਿਆਂ ਉਸਨੂੰ ਦੁੱਖ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕੋਈ  
ਸਗੋਂ ਇਹ ਸ਼ੁਕਰਾਨਾ ਸ਼ਾਇਦ ਉਸਦੇ ਵਜੂਦ 'ਚੋਂ ਨਿਕਲ ਕੇ
ਮੇਰੇ ਉੱਪਰ ਇੱਕ ਸਦੀਵੀਂ ਭਾਰ ਬਣ ਗਿਆ

ਉਸ ਮੇਰੇ ਜੁਆਬ ਦੀ ਉਡੀਕ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ 
ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਜਾਣਦੀ ਸੀ ਕਿ ਅਖੀਰਲਾ ਵਾਰ ਉਹ ਕਰ ਚੁੱਕੀ ਏ
ਅਤੇ ਹੁਣ ਉਸਨੂੰ ਇੱਕ ਹੋਰ ਪੈਂਡਾ ਇਕੱਲਿਆਂ ਤੈਅ ਕਰਨਾ ਏ 

शुक्रवार, 25 मई 2012

पीछे मुड़कर देखना चाहता नहीं मैं 
आगे नज़र कुछ  भी आता नहीं 
सिवाय  घुप्प अँधेरे के 
ओह ! 
यह  कहाँ आ  गया मैं 
और जा रहा हूँ कहाँ 
अचानक  से  कुछ  सामने आता है 
और लपक  लेता हूँ मैं खुद को बचाने के लिए 


शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

बेपैसे की तुकबंदी



मत पूछो मैं कैसा हूँ
खोटा सिक्का-पैसा हूँ
बस जैसे-का-तैसा हूँ
बदल गई मेरी दुनिया पर  
मैं वैसे-का-वैसा हूँ

अकल की ठंडी सिल्ली हूँ   
असल में भीगी बिल्ली हूँ
मिस्टर शेखचिल्ली हूँ
खुद ही उड़ी एक खिल्ली हूँ

अहसानों का अनचुका बिल था
दाग बन गया जो तिल था
डस्ट बीन बन गया जो दिल था
अता-पता नहीं मंज़िल का

थक के बैठा हूँ रस्ते पे
राह अभी भी तकता हूँ
समझे कुछ खुदा भी
जाने क्या-क्या बकता हूँ   

गुरुवार, 22 मार्च 2012

जाने क्या है मुझ उल्लू के पट्ठे में कि हस्ती मिटती नहीं मेरी


21 मार्च 2012


हूँ
जी हाँ
हूँ

धूलि-धूसरित
पराजित
खुद से ही ठुकराया गया
भटका हुआ
अटका हुआ
सिगरेट का धुआँ
अनछुआ
आक्रांत
किसी गिनती में नहीं
अनगिनत
मजबूर
मशहूर
अपनों से दूर
हालात का मारा बेचारा बेऔक़ात नीची जात
तरसता
त्रस्त
ग्रस्त
अपनी नाकामियों में मस्त अस्त-व्यस्त लस्त-पस्त
बेरोजगार
सोगवार
भूला हुआ कलाकार
रास्ता इनायतों का तकता
टूट गया
एंग्री यंग मैन का तख़्ता 
नहीं हूँ कहता हर बशर
दिलाता याद कि हूँ 
खुद को समझने समझाने आत्म पर ही किया प्रहार
नहीं होता रे चमत्कार 
इस बार भी नहीं तेरी बार 
रोया बार-बार करे तू बेशक ज़ार-ज़ार 
बेकार 
पर भाई मेरे हिम्मत मत हार कर पार कीचड़ गार बनी टपकने से गीदड़ों की लार 
अपने कांधे पे उठा अपना भार 
चल यार 
बोल
कि हूँ

कि तेरे होने पे मुंतज़िर है एक पूरी दुनिया 
तेरे होने पे चलता है किसी का कारोबार 
चलता है किसी का शासन 
कोई जमा के तुझी पे बैठा है आसन 
कोई किसी किसी वजह से तुझसे जलता है 
तेरे होने पे वो है जो तेरे न होने पे नहीं होता    

तो बोल कि हूँ
जब तक हूँ
हूँ 

शनिवार, 3 मार्च 2012

बस काम किये जा
मर-मर के जिए जा
असल जाम होठों तक आ न पाए तो क्या
घूँट सब्र के पिए जा
तू क्या करेगा शायरी  
अबे जा...  

मंगलवार, 3 जनवरी 2012