बुधवार, 21 जुलाई 2021

 जीवन में जो कुछ भी है 

सब कुछ

सहर्ष तो नहीं स्वीकारा है 

पर जो है 

सो है ही 

और थोड़े-बहुत हेर-फेर के साथ 

रहेगा भी 

तो जैसे-तैसे कर लेने के बाद स्वीकार 

खोजा सुख खीझते-छीजते 

ख़ाली गुल्लक को हिला-हिलाकर

और सच मानिए थोड़ा बहुत पा भी गया शायद 

ख़ाम-ख़याली में 

ख़ाली थी 

पर तोड़ नहीं पाया गुल्लक 

तोड़ूँगा भी नहीं 

आशावादी जो ठहरा 

उल्लू का पट्ठा।

इसलिए जो कुछ मिला 

उसी में हर्ष ढूँढने की ताल-बेताल कोशिश की 

और जो नहीं मिला 

उसमें भी। 


दुख तो इस बात का है 

यह मेरे अकेले की दास्तान नहीं।


21 July 2015



शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

 


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कभी-कभी मेरा अपनी पत्नी से भी झगड़ा होता है। 


कहा-सुनी तो कई बार हुई है, दो-एक बार हाथ भी उठा है। 


मेरे अंदर एक बुनियादी मर्द कभी-कभी सभ्य साँप की तरह फन उठाता है। लेकिन यह सब इतना क्षणिक होता है कि मैं ख़ुद जान नहीं पाता कि एकाएक यह हुआ क्या।  


एक लंबे समय से ऐसा हुआ नहीं लेकिन आगे कब हो जाए पता नहीं। 

आप चाहें तो बिन मांगे जो सर्टिफिकेट मुझे देना चाहें, दें। 


यह सब ऐसे ही है कि हम कितने ही सेक्युलर क्यों न हों, हिन्दू होने के प्रत्यक्ष और परोक्ष लाभ लेने में हमें कोई गुरेज नहीं होता। कम-से-कम इतना आश्वस्त तो होते ही हैं हम कि अल्पसंख्यक न होने के कारण दंगों में तो नहीं ही मारे जाएंगे। ज़ात-पात को कितना भी न माने पर ब्राह्मण होने के लाभ जो चुपचाप बिना कहे हमें मिल जाते हैं उन्हें हम लात तो नहीं मार देते न? तो जो मर्दवादी सेटअप में हम रहते आएँ हैं उससे एकदम से छुटकारा कैसे मिलेगा भला?  


जो हो ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि उसे ख़ून-वून निकला हो। बल्कि ख़ुद मुझे बेहद तकलीफ हुई क्योंकि गुस्से का अचानक ज्वार आपके अपने शरीर को काफी नुकसान पहुँचाता है बनिस्पत सामने वाले के। कई बार अचानक गुस्सा आने के बाद मैं बहुत देर तक ऊर्जा रहित कटे पेड़ की तरह गिरा रहा हूँ। दाँत भिंचने के बाद जबड़े वगैरह में भी काफी दर्द-वर्द होता रहा है मुझे। 


मैंने प्रोमिला से कहा भी है कि यार कभी मुझे एकदम से गुस्सा आ जाए तो मुझे बातचीत में उलझा लो, मेरे सवालों का जवाब देते जाओ। और तब मैंने महसूस किया है कि गुस्सा आने के बजाए हमारे बीच डिस्कशन होने लगता है। मैंने उससे कहा है कि देखो यूँ समझो कि मैं एक बीमार आदमी हूँ।


बचपन से चिड़चिड़ा रहा हूँ मैं। स्कूल में सहपाठियों से काफी मार खाई है और बाप ने भी खूब जी भर के पीटा है। चिड़चिड़ा इतना था कि डैडी मुझे पापड़ी कहते थे और आज भी कभी-कभी कह देते हैं। 


बहुत-सी अच्छी चीज़ें-सपने-प्रेमिकाएँ मेरे देखते-देखते, मेरी होते-होते छिन गई हैं। आज तक यह चला आ रहा है। 


मने अपने लिए सहानुभूति पैदा करने की कोशिश कर रहा हूँ आपके मन में। 


एक बार तो बाप की पिटाई से विद्रोह कर घर से भाग भी गया था। पर तीन दिन में वापस आ गया। एक्चुअली घर की याद बहुत आ रही थी। क्योंकि मीठी यादें ज़्यादा थीं। 


मेरी माँ की तब जो हालत बिगड़ी थी आज तक उस जलाल में वापस न आ पाई। और बाप तब के बाद से बिलकुल निरीह सा बन गया। बहुत तकलीफ पहुंचाई मैंने उन्हें। मैं ऐसा अपराधी हूँ कि वे मुझे कोई सज़ा भी नहीं दे सकते और मेरे अपराध की सज़ा खुद ही भुगत रहे हैं। संतान भी क्या चीज़ होती है न!  


आज सुबह बेटे को एक थप्पड़ जमाया। वो हैरानी से मेरी तरफ देखता रहा। 


नौ साल का वह लड़का मेरे थप्पड़ से रोने के बजाए सोच में पड़ गया कि यह जो मेरा बाप है मुझसे इतना प्यार करता है तो फिर कभी-कभी मारता काय को है। दीदियों को कुछ नहीं कहता। 


पर एक मिनट न लगाया उसने यह सब भूलने में और उसके बाद हम बाप-बेटा साथ में नहाए और उसने मेरे थप्पड़ को कोई भाव न देते हुए अल्टीमेटम दे दिया कि बाप 

जो माँगूँगा लाकर दोगे आप। 

समझे? 


मेरी क्या बिसात कि न समझूँ। 


हाँ भई लड़ाई होती रहती है हम दोनों पति-पत्नी में। पर हम दोनों ही एक-दूजे के बिना नहीं रह सकते क्योंकि मीठी यादें ज़्यादा हैं। 


जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ मेरी बीवी इसे साथ-साथ पढ़ रही है मेरे कंधे पर अपना गाल टिकाए। वो हँस रही है क्योंकि वो जानती है मुझे कि मैं उससे क्षमा मांगने में एक क्षण नहीं लगाता और पिछले दसेक वर्षों में तो ख़ुद को बेहद बदलने की कोशिश की है मैंने। 


एक अच्छी बात यह रही कि हमारे बीच लड़ाई-झगड़े बेहद आम सी बातों पर हुए न कि किसी गैर औरत या मर्द के पीछे। और न ही यह लड़ाई कभी पैसे के पीछे और न ही उसके मायके वालों को लेकर हुई। दहेज-वहेज का मामला भी रहा नहीं कभी। 


और यह भी कि इस पोस्ट को लिखते समय बिस्तर बिछाने की बात पर हमारी लड़ाई होते-होते बची। 


पोस्ट ठीक से लिख पाऊँ और सच स्वीकारने का माद्दा मुझमें रहे इसलिए प्रोमिला ने खजूर, गुड़ के सेव, पापड़ी और सफ़ेद मीठे फुल्ले-से जिन्हें कई बार चने के साथ खाया जाता है, मेरे पास रख दिये हैं ताकि मैं खाते-खाते लिखूँ और स्टेमिना न लूज़ कर जाऊँ। 


मेरे जीवन में जो चंद बेहद अच्छी बातें-चीज़ें हुई हैं प्रोमिला उनमें से एक बेहद आशीर्वाद-स्वरूप मुझे मिली है। उसे क्या मिला है, वो जाने। 


अब मैं किसको जाकर पाठ पढ़ाऊँ और किसकी निंदा-आलोचना कर ख़ुद को उल्लू का पट्ठा प्रगतिशील साबित करूँ।