बुधवार, 29 जून 2011

धूप और छाँव की बातचीत


एक बार धूप और छांव आपस में मिले।
विचार चाहें दोनों के न मिले हों कभी, पर दोनों एक-दूजे से मिले यानि मुलाकात हुई।

वैसे ऐसा कभी होता तो नहीं, पहले कभी हुआ भी नहीं था और हो सकता है आगे भी कभी हो क्योंकि जहां छांव है वहाँ धूप नहीं हो सकती

पर फिर भी हम मान लेते हैं कि दोनों आपस में मिले।

पर मिले होंगे कहाँ और कब?

गाँव में जो बरगद का पेड़ होता है न जैसा अक्सर हिन्दी फिल्मों में दिखता है
सूरज डूबते समय उसी के नीचे दोनों की मुलाकात हुई होगी
अरे भई उस वक़्त धूप सीधी न पड़कर तिरछी पड़ती है और इस तरह वो पेड़ की शाखाओं के तले चोरी-चोरी घुस आई होगी
उसे आता देख छांव ने पेड़ के तने के पीछे छुपके कर ही ली होंगी कुछ बातें। 

वैसे धूप होती बड़ी बदमाश है, दिन में भी पेड़ की पत्तियों से छन-छन कर छांव के घर में आती, सेंध लगाती रहती है, हो सकता है उस वक़्त हुई हो दोनों में कुछ कहा-सुनी।   

या फिर हो सकता है दोनों ने एक-दूसरे से फोन पर ही बात कर ली हो
या विडियो कोंफेरेंसिंग कर ली हो
या शायद एक दूसरे से फेसबुक पर चैट की हो
पर उसे भी तो मिलना ही कहेंगे

तो क्या-क्या बातें हुई उन दोनों के बीच आइये सुनते हैं:


धूप
अरे तू छाँव? कैसी है बहन?  मुझसे हमेशा नाराज़ रहती है।  कभी मेरे सामने नहीं आती।

छांव        
तेरे सामने आने में मुझे क्या डर? मुझे कहती है नाराज़ रहती है पर तू तो मेरे आते ही भाग जाती है।

धूप        
ओह-हो। एक तो पहली बार मिली है।  बस लोगों से सुना करती थी तेरे बारे में और मिलते ही तू लड़ने लगी।

छांव        
मैं भी तो सुनूँ क्या सुना था तूने मेरे बारे में लोगो से।

धूप        
अरे यही कि बड़ी शीतल होती है तू।  पर मेरे सामने तो आग उगल रही है।  और किसी को यह भी कहते सुना था भगवान तेरी माया कहीं धूप कहीं छाया।

छांव        
माया तो भगवान को मंदिर में क़ैद करके खुद भगवान बन बैठी है।

धूप        
पर तू क्यों ऐंठी है?  तुझ पर पड़ा है क्या काले भूत का साया?

छांव
तेरे आने पे झुलस जाती है लोगों की काया

धूप
अच्छा जी, देख मेरे सामने खुद तुझे भी पसीना आया।

छांव
तू ग्लोबल वार्मिंग की दादागिरी दिखाएगी तो सारी धरती रेगिस्तान में बदल जाएगी फिर मुझ जैसी छाया कहाँ जाएगी।  यह सोच कर ही मुझे शिवरिंग हो रही है, कांप उठती हूँ मैं। सोच कर ही पसीना आ जाता है।

धूप
हाँ बहन।  अपनी गर्मी से तो मैं खुद परेशान हूँ।  कहीं कूलर के सामने बैठ के घड़े का ठंडा पानी पीना भी मेरे नसीब में नहीं है।

छांव
बहन सर्दियों में मेरी भी हालत कुछ ऐसी ही  होती है।  मैं तो तुझ से मिलने को तरस जाती हूँ।  ये सूरज जीजा जी तुझे लेकर पता नहीं विंटर वैकेशन में छुट्टियाँ मनाने कहाँ निकल जाते हैं।  कई-कई दिनों तक तुम दोनों दिखाई ही नहीं देते।

धूप
हाय तेरे जीजा जी डूब रहे हैं।  अब मुझे भी जाना होगा।

छांव
जीजा जी तो कल तक डूबे रहेंगे।  पता नहीं अब हम कब मिलेंगे।


धूप
ऐसे कर न कि तू फ़ेसबुक पे आ जा  

छाया
मुझे अभी तक अपने फेस का फोटो ही नहीं मिला जिसे मैं लगा के फ़ेसबुक पे जा सकूँ।

धूप
जैसे मैंने अपनी जगह पर सूरज की फोटो लगाई है

छांव
वैसे ही मैं अपनी जगह पर चाँद की फोटो लगा दूँगी।  चाँदनी नाराज़ हो तो होती रहे।

धूप
ठीक है तो फिर मिलते हैं और करते हैं चैट

छांव
ओके बाइ बाइ  

मंगलवार 28 जून 2011

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