शुक्रवार, 25 मई 2012

पीछे मुड़कर देखना चाहता नहीं मैं 
आगे नज़र कुछ  भी आता नहीं 
सिवाय  घुप्प अँधेरे के 
ओह ! 
यह  कहाँ आ  गया मैं 
और जा रहा हूँ कहाँ 
अचानक  से  कुछ  सामने आता है 
और लपक  लेता हूँ मैं खुद को बचाने के लिए