मंगलवार, 23 नवंबर 2010

हर तरफ भूख का साम्राज्य है

चारों ओर बिखरी है भूख की दुर्गन्ध
लोगों का पेट खराब है

भूख से डरे लोग
खाते ही जा रहे हैं
फिर भी हैं भूखे-के-भूखे

नाकों चने चबा रहे हैं
इंसान की जमात में शामिल होने को
बेक़रार जिस्म

ज़रूरी है
कला - संस्कृति को बचाए रखने के लिए
कुछ लोग भूखे रहें

सुजलाम - सुफलाम इस धरती पर
फुटपाथ पर रहते
भूख और मौत के बीच संघर्ष करते
हार की ज़िल्लत सहते मनुष्यों को
पेट भरने के लिए
चिड़ियों का दाना खाते देखो
भूख को सर नवाते देखो

अन्न उपजाने वाला किसान
आत्महत्या न करे तो क्या करे

भूखे है सब-के-सब

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें