बुधवार, 21 जुलाई 2021

 जीवन में जो कुछ भी है 

सब कुछ

सहर्ष तो नहीं स्वीकारा है 

पर जो है 

सो है ही 

और थोड़े-बहुत हेर-फेर के साथ 

रहेगा भी 

तो जैसे-तैसे कर लेने के बाद स्वीकार 

खोजा सुख खीझते-छीजते 

ख़ाली गुल्लक को हिला-हिलाकर

और सच मानिए थोड़ा बहुत पा भी गया शायद 

ख़ाम-ख़याली में 

ख़ाली थी 

पर तोड़ नहीं पाया गुल्लक 

तोड़ूँगा भी नहीं 

आशावादी जो ठहरा 

उल्लू का पट्ठा।

इसलिए जो कुछ मिला 

उसी में हर्ष ढूँढने की ताल-बेताल कोशिश की 

और जो नहीं मिला 

उसमें भी। 


दुख तो इस बात का है 

यह मेरे अकेले की दास्तान नहीं।


21 July 2015



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें