बुधवार, 15 जून 2011

जो नहीं कह सका तुमसे 
सिर्फ वही कहने के लिए 
कितना कुछ कहता रहा 

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर...

    सर आपकी बात पे एक दोहा...

    अनवोला जो रह गया, वो है साँचा नेह
    मन का पन्छी उड़ गया, धू धू जलती देह.

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  2. बहुत गहरी कविता है विजय भाई

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