गुरुवार, 18 नवंबर 2021

विजय सिंह के बारे में

होशियारपुर, पंजाब से आए और दिल्ली में संघर्षरत माता-पिता के यहाँ  20 अप्रैल 1971 (लेकिन काग़ज़ों में 24 अप्रैल, वर्ष वही) को दिल्ली में आश्रम नामक जगह के नज़दीक, गुरद्वारा बाला साहिब के सामने एक जेजेकॉलोनी में जन्में विजय सिंह पिछले लगभग तीन दशकों से रंगमंच में सक्रिय हैं। आरंभिक शिक्षा घर के नज़दीक एक सरकारी स्कूल में (हिंदी मीडियम), माध्यमिक शिक्षा घर के नज़दीक एक सरकारी स्कूल (हिंदी मीडियम), राजनीति विज्ञान में स्नातक स्तर की शिक्षा घर के नज़दीक एक सरकारी कॉलेज (हिंदी मीडियम) और परफार्मेंस स्टडीज़ में परास्नातक स्तर की शिक्षा घर से दूर कश्मीरी गेट स्थित अंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली से अंग्रेज़ी मीडियम में।  कई काम किये। ट्यूशन पढ़ाई, जूता बनाने वाली फीनिक्स कंपनी में एक्साइज़ असिस्टेंट और पेप्सी बनाने वाली दिल्ली कूल ड्रिंक्स में स्टैटिस्टीशियन की नौकरियाँ की। यह सब कुछ इसलिये किया कि थियेटर करने से मम्मी-डैडी न रोकें।   

मुख्य तौर पर हिंदी रंगमंच में बतौर अभिनेता काम करते रहे हैं और अंग्रेज़ी और पंजाबी थियेटर भी किया है। एम एस सथ्यू, कीर्ति जैन, महेश दत्तानी, दीपन् शिवरामन् जैसे निर्देशकों के साथ काम किया है। एक फ्रीलांसर के तौर पर रेडियो माध्यम से भी जुड़े हैं और रेडियो नाटकों के अलावा पंजाबी न्यूज़, एफ एम गोल्ड में काम किया है। दूरदर्शन के लिये भी अनेक वॉइसओवर किये हैं और ट्रांसलेशन, लेखन इत्यादि करते रहते हैं। पाकिस्तान, दुबई, चीन की यात्राएँ रंगमंच के सिलसिले में कर चुके हैं। अपनी दो सोलो प्रस्तुतियाँ - मंटो कृत शहीदसाज़, और उदय प्रकाश कृत पॉल गोमरा का स्कूटर जहाँ अवसर मिल जाए करते रहते हैं। संगीत नाटक अकादेमी में लगभग पक्के तौर पर एक कच्ची नौकरी पकड़ कर पिछले 10 से भी अधिक वर्षों से अपनी जीविका की गाड़ी के पहियों में कुछ तेल डालने का जुगाड़ बिठा रखा है। 


उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री पीजीडीएवी कॉलेज से बीए के पाँचवें वर्ष में हासिल की। फिर उन्हें यह अहसास होने में कई वर्ष, शायद पंद्रह-एक बीत गए कि उन्हें एमए कर लेनी चाहिए। एमए हिंदी में करने की ठानी और ठान कर, दिल्ली यूनिवर्सिटी से दूर शिक्षा स्कूल में एडमिशन पाने के बाद भी पढ़ाई नहीं की और फिर उसके कई और वर्षों बाद महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से पत्राचार से एमए हिंदी के प्रथम वर्ष में प्रवेश पाया और 54 प्रतिशत मार्क्स लाने की ख़ुशी में दूसरे वर्ष में एडमिशन लेना भूल गए और एमए बीच में ही छूट गई। आख़िरकार सन् 2013 में इन्होंने अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली से परफार्मेंस स्टडीज़ में गिरते-पड़ते एमए की डिग्री हासिल करने में सफलता हासिल कर ही ली। हिंदी में एम ए न कर पाने की टीस अभी बाक़ी है। सो पिछले ही महीने इग्नू की फीस भरी है, एम ए प्रथम वर्ष में दाखिला पा लिया है। देखें, आगे क्या होता है। 


ख़ुद को बहुत बड़ा ऐक्टर समझने की ग़लतफ़हमी अभी तक दूर न कर पाने में कामयाब विजय सिंह एनएसडी से नहीं हैं। इस ग़लतफ़हमी का ज़िम्मेदार वे अकेले नहीं हैं, इसमें काफ़ी कुछ योगदान उन प्रस्तुतियों का भी है जो न जाने कैसे ठीकठाक सी हो गईँ और दर्शकों ने तालियाँ बजा दीं तो इन्होंनें समझा कि इन्होंने बहुत बड़ा तीर मार लिया है। इनकी एक क़ामयाबी कई फिल्मों, वेबसीरीज़ इत्यादि के ऑडिशन्स में नाकाम होने की भी है जिस कारण थियेटर का परचम इन्हें थामें रखना होता है क्योंकि सिर्फ़ थियेटर ही है, जहाँ हरेक के लिये जगह है।

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