एक सेलेक्टर था।
उसे कहा गया कि तुम सेलेक्टर हो यह बात तुम्हारे और हमारे (यानी तुम्हें सेलेक्टर गर्दानने वाले) के सिवा किसी और को पता नहीं चलनी चाहिए।
सेलेक्टर ने कहा - ओके।
वैसे यह बात सेलेक्टर को भी सूट करती थी। हालांकि दुनिया को बताकर थोड़ा अपनी अकड़ वग़ैरह क़ायम करने का लोभ उसे था, पर उसने अपनी फनटूश इच्छा को क़ाबू किया कि अभी किसी को न बताना ही सही है कि मैं सलेक्टरों की जमात में हूँ।
मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'पंच परमेश्वर' पढ़ चुके, नये-नये सेलेक्टर बने सेलेक्टर ने जैसे ही सेलेक्शन का काम शुरू किया उसके पास सेलेक्शनेच्छुकों के फोन आने लगे।
सेलेक्टर चकराया।
जब उसने ख़ुद किसी को बताया ही नहीं कि वह सेलेक्टर है और ज़ाहिर है कि अधिकारियों ने भी किसी को बताया न होगा कि वह सेलेक्टर है क्योंकि अधिकारियों ने तो ख़ुद ही मना किया था किसी को बताने को कि वह सेलेक्टर है!!
फिर चयनातुरों को कैसे पता चल गया कि वह चयनकर है, मामला भयंकर है!!!
उसे माजरा समझ न आया।
आपको समझ आया?
#एक्सटेंशनकाउंटर्स
10 नवंबर 2019
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें