रविवार, 10 अगस्त 2025

वर्ष 2013 में दिल्ली में रंगमंचीय गतिविधियाँ

 

दिल्ली देश की राजधानी होने के साथ साथ सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र भी है। देखा जाए तो किसी भी एक वर्ष में दिल्ली में जितने विविध कार्यक्रम होते हैं शायद ही विश्व के किसी और शहर में होते हों। अगर मान भी लिया जाए कि कहीं और भी इतने कार्यक्रम होते होंगे तो भी एक बात तो निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि तमाम सांस्कृतिक कार्यक्रम और शहरों के दर्शकों को इतने सुलभ नहीं होते होंगे जितने दिल्ली के दर्शकों को।  वर्ष 2013 के दौरान दिल्ली में रंगमंच  की कई गतिविधियां रहीं।

 

दिल्ली में हर वर्ष जनवरी में भारत रंग महोत्सव का आयोजन होता है। इस वर्ष भी देश विदेश के कई नाटक प्रस्तुत किए गए थे। साल 2014 की 4 जनवरी को इसका आग़ाज़ होने जा रहा है। जनवरी 2014 में देश विदेश के लगभग 70 नाटक इस महोत्सव में प्रस्तुत किए जाएंगे।

 

फरवरी माह में नेशनल बुक ट्रस्ट और संगीत नाटक अकादेमी ने मिल कर लोक एवं जनजातीय कलाओं का उत्सव देशज प्रस्तुत किया। दिल्ली के प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेले के समय आयोजित इस उत्सव में देश भर से 29 लोक मंचीय कलाओं को प्रस्तुत किया गया। उत्सव का शुभारंभ तीजन बाई की पंडवानी गायन प्रस्तुति से किया गया। देशज में कई ऐसी प्रस्तुतियाँ थीं जो दिल्ली वालों ने पिछली बार कब देखी हों शायद उन्हें याद भी नहीं होगा जैसे छत्तीसगढ़ का बस्तर बैंड, मणिपुर का कबूई नागा नृत्य, केरल की बाम्बू सिंफनी, नागालैंड के अओ कबीले का लोक नृत्य व संगीत, असम का बगरुमबा और बोडो नृत्य, लक्षद्वीप का कोलकली, बिहार का बहुरा गोढ़नी, ओड़ीशा का घूमरा और त्रिपुरा का होजगिरी। उत्सव की अंतिम प्रस्तुति में गुजरात भारत में रहने वाले अफ्रीकी मूल की जनजाति द्वारा प्रस्तुत सिद्धि धमाल ने लोगों को झूमने के लिए मजबूर कर दिया था।

 

संगीत नाटक अकादेमी प्रदर्शनकारी कलाओं के क्षेत्र में देश के सर्वोच्च सम्मान प्रदान करती है। इस वर्ष 2012 के लिए रतन  थियम फ़ेलो चुने गए और दिल्ली की निर्देशिका त्रिपुरारी शर्मा को निर्देशन के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए अकादेमी पुरस्कार प्रदान किया गया। वर्ष 2013 के लिए भी पुरस्कारों की घोषणा हो चुकी है जिसमें दिल्ली में रहने वाले नाटककर रामेश्वर प्रेम को संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार के लिए चुना गया है।

 

दिल्ली सरकार की प्रमुख संस्था साहित्य कला परिषद 1974-75 से काम कर रही है। यह न सिर्फ मंच कलाओं बल्कि साहित्य व ललित कलाओं के संवर्धन के लिए भी प्रयासरत रहती है। इस बीच लोक कलाओं को भी इसमें सम्मिलित किया गया है। साहित्य कला परिषद की खासियत यह रही कि इसने रंगमंच को मंडी हाउस से निकालकर दिल्ली के विभिन्न कोनों तक पहुँचाने की कोशिशें की हैं। साहित्य कला परिषद का एक जनकपुरी केंद्र भी है।

 

गत वर्ष की उत्कृष्ट प्रस्तुतियों का समारोह भारतेन्दु नाट्य उत्सव इस साल मार्च में किया गया था। इसमें

 

नथाराम गौड़ की नौटंकी लैला मजनूँ अनिल चौधरी के निर्देशन में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल द्वारा प्रस्तुत की गई।

 

भगवती चरण वर्मा के उपन्यास चित्रलेखा का नाट्य रूपान्तरण सुरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में रंगसप्तक ने प्रस्तुत किया।

 

रमेश मेहता के नाटक उलझन को सोहेला कपूर के निर्देशन में थ्री आर्ट्स क्लब ने प्रस्तुत किया।

 

मेरी जिम्मरमैन का लिखा नाटक मेटामारफोसिस कुसुम हैदर के निर्देशन में यात्रिक ने प्रस्तुत किया।

 

मंटो की कृतियों को केंद्र में रखकर दानिश इकबाल द्वारा लिखित नाटक एक कुत्ते की कहानी सलीमा रज़ा के निर्देशन में विंग्स कल्चरल सोसाइटी द्वारा प्रस्तुत किया गया।

 

तड़ित मिश्रा द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक अनावृत संसप्तक ने प्रस्तुत किया।

 

जयवर्धन द्वारा लिखित नाटक किस्सा मौजपुर का की प्रस्तुति चित्रा सिंह के निर्देशन में रंगभूमि ने की। और

 

ब्रात्य बसु द्वारा लिखित नाटक सेवेंटींथ जुलाई बापी बोस के निर्देशन में सर्किल थियेटर प्रस्तुत किया गया।

 

थियेटर में बच्चों के लिए कार्यशाला और नाट्योत्सव का आयोजन जिसे नटखट उत्सव कहा गया है।

 

इसके अलावा उत्कृष्ट मौलिक नाटकों का मंचन सितंबर महीने में मोहन राकेश सम्मान एवं नाट्य समारोह में किया गया। इसमें

 

मोहन राकेश का नाटक आधे अधूरे क्षितिज संस्था द्वारा भारती शर्मा के निर्देशन में प्रस्तुत किया गया। इस साल जिन नए नाटककारों और नाटकों को प्रस्तुत किया गया उनके नाम हैं: 

 

संदीप लेले का मारे गए गुलफाम जिसका निर्देशन नटसम्राट के लिए श्याम कुमार ने किया

 

अदिति जैन का सपनों की देहरी के उस पार श्रीराम सेंटर रंगमंडल ने प्रस्तुत किया जिसके निर्देशक थे कृष्णकांत,

 

संतोष कुमार निर्मल का राम कभी मरता नहीं लोकेन्द्र त्रिवेदी के निर्देशन में अभिज्ञान नाट्य एसोसिएशन ने प्रस्तुत किया और

 

ज्ञान सिंह मान का काठ के घोड़े सोहेला कपूर के निर्देशन में कात्यायनी संस्था ने प्रस्तुत किया।

 

साहित्य अकादेमी दिल्ली ने भी नाट्य पाठ के कार्यक्रम शुरू किए। इनमें प्रभाकर श्रोतिय का नाटक इला, डी पी सिन्हा का नाटक सम्राट अशोक और सुरेन्द्र वर्मा का नाटक मुग़ल महाभारत शामिल हैं। सुरेन्द्र वर्मा का मुग़ल महाभारत चार नाटकों की कड़ी है। इस चतुष्टय को हिन्दी रंगमंच के इतिहास में एक अहम घटना के तौर पर देखा जाना चाहिए। इसमें मुग़ल काल के समय, कूटनीति और दुश्चक्रों का बेहद सजीव चित्रण सुरेन्द्र वर्मा ने किया है।

 

साल के आखिर में श्रीराम सेंटर ने अपने फेस्टिवल को पुनर्ज्जीवित किया है। इस बार उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ आयोजित किया। इसमें रंजीत कपूर की प्रस्तुतियाँ द जनपथ किस और चेखव की कहानियाँ देखने को मिलीं।

 

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय को इस वर्ष एक नए अध्यक्ष के रूप में रतन थियम मिले और एक नए निर्देशक के रूप में वामन केंद्रे। इसी वर्ष राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में कुछ ऐसी प्रस्तुतियां की गईं जिन्हें उनके मिजाज और तेवर के लिए याद रखा जाएगा जैसे रोयस्टेन एबल द्वारा निर्देशित ओल्ड टाउन, अनुराधा कपूर द्वारा निर्देशित विरासत नाट्य त्रयी, और दिनेश खन्ना द्वारा निर्देशित जिम मॉरिसन

 

दिल्ली में लंबे समय तक रहने वाले मराठी नाटककर गोविंद पुरुषोत्तम देशपांडे का इस वर्ष 16 अक्तूबर को निधन हो गया। सत्यशोधक, उद्ध्वस्त धर्मशाला, रास्ते और आंधार यात्रा जैसे महत्वपूर्ण नाटक लिखने वाले गो पु देशपांडे को दिल्ली और देश की समस्त नाटक बिरादरी का प्यार और श्रद्धा हमेशा मिलती रहेगी।

 

इसके अलावा महेंद्र एक्सीलेंस इन थिएटर अवार्ड्स का फेस्टिवल देश भर की नाट्य गतिविधियों में श्रेष्ठतम को सामने लाने का प्रयास करता है। और पिछले तीन-चार वर्षों से दिल्ली में एक नया रूझान शुरू हुआ है 10 मिनट के नाटकों का। इस बार भी शॉर्ट एंड स्वीट फेस्टिवल में यह प्रस्तुतियाँ की गईं।


30 दिसंबर 2013

 

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